तुलसी पूजन दिवस 25 दिसम्बर शुक्रवार कोहै । इस दिन तुलसी के निकट जिस मंत्र-स्तोत्र आदि का जप-पाठ किया जाता है, वह सब अनंत गुना फल देनेवाला होता है |प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, भूत, दैत्य आदि सब तुलसी के पौधे से दूर भागते है |
तुलसी के सामीप्य एवं सेवन से रोगनष्ट हो जाते हैं |
पूजन, रोपण व धारण पाप को जलाता है और स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदायक है | श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है | जो चोटी में तुलसी स्थापित करके प्राणों का परित्याग करता है, वह पापराशि से मुक्त हो जाता है | नाम के उच्चारण माञ से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है | तुलसी ग्रहण करके मनुष्य पातकों से मुक्त हो जाता है | पत्ते से टपकता हुआ जल जो अपने सिर पर धारण करता है, उसे गंगास्नान और १० गोदान का फल प्राप्त होता है |
तुलसीपरिक्रमा से सुुुुख शांंति और धंधे में बरकत आती है
तुलसी माता पर जल चढ़ाते हुए इस मंत्र को बोलें महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि जरा मुक्तं तुलसी त्वाम् नमोस्तुते मंत्र का अर्थ हैहे भक्ति का प्रसाद देने वाली माँ! सौभाग्य बढ़ाने वाली, मन के दुःख, और शरीर के रोग दूर करने वाली तुलसी माता को हम प्रणाम करते है |
धन वापिस पाने के लिए कर सकते हैं ये उपचार
11 लौंग, 11 साबुत नमक की डली को नीले कपड़े में बांध दें और उस व्यक्ति का ध्यान करते हुए रात्रि 10 बजे के आस-पास किसी चौराहे पर जाकर चुपचाप इसे रख कर आ जाए। ऐसा करने से दिया हुआ धन वापिस मिलने लगेगा। यह फंसा हुआ धन प्राप्ति का सरल उपाय है।मंगल एवं बुधवार को क़र्ज़ का लेनदेन न करें। शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि मंगलवार को कभी क़र्ज़ नहीं लेना चाहिए। इस दिन क़र्ज़ लेने वाला व्यक्ति हमेशा क़र्ज़ के बोझ तले दबा रहता है। वहीं बुधवार के दिन कभी उधार नहीं देना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दी गई उधारी के वापस आने के योग कम होते हैं।
पांच अंग धोकर भोजन करने से बढती है उम्र
स्कन्द पुराण में आया है कि भोजन करते समय ५ अंग धोकर जो भोजन करता है उसकी उम्र १०० साल की होती है … उसकी आयु बढ़ती है ५ अंग …२ हाथ ….२ पैर… और मुंह धोकर भोजन करने बैठें ।
शिशिर ऋतु प्रारंभ 21 दिसम्बर 2020 से हो रहा है। शीत ऋतु के अंतर्गत हेमंत और शिशिर ऋतुएँ आती हैं।
इस काल में चन्द्रमा की शक्ति विशेष प्रभावशाली होती है।
इसलिए इस ऋतु में औषधियों, वृक्ष, पृथ्वी व जल में मधुरता, स्निग्धता व पौष्टिकता की वृद्धि होती है,
जिससे प्राणिमात्र पुष्ट व बलवान होते हैं। इन दिनों शरीर में कफ का संचय व पित्त का शमन होता है।
शीत ऋतु में पाचनशक्ति प्रबल रहती है
शीत ऋतु में स्वाभाविक रूप से जठराग्नि तीव्र होने से पाचनशक्ति प्रबल रहती है।
इस समय लिया गया पौष्टिक और बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। शीत ऋतु में खारा तथा मधुर रसप्रधान आहार लेना चाहिए।
पचने में भारी, पौष्टिकता से भरपूर, गरम व स्निग्ध प्रकृति के, घी से बने पदार्थों का यथायोग्य सेवन करना चाहिए। मौसमी फल व शाक, दूध, रबड़ी, घी, मक्खन, मट्ठा, शहद, उड़द, खजूर, तिल, नारियल, मेथी, पीपर, सूखा मेवा तथा अन्य पौष्टिक पदार्थ इस ऋतु में सेवन योग्य माने जाते हैं।
रात को भिगोये हुए चने (खूब चबा-चबाकर खायें),
मूँगफली, गुड़, गाजर, केला, शकरकंद, सिंघाड़ा, आँवला आदि कण खर्च में खाये जाने वाले पौष्टिक पदार्थ हैं।
बढ़ी हुई जठराग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगती है
इस ऋतु में बर्फ अथवा बर्फ का या फ्रिज का पानी, रूखे-सूखे, कसैले, तीखे तथा कड़वे रसप्रधान द्रव्यों, वातकारक और बासी पदार्थों का सेवन न करें।
शीत प्रकृति के पदार्थों का अति सेवन न करें। हलका व कम भोजन भी निषिद्ध है। इन दिनों में खटाई का अधिक प्रयोग न करें,
जिससे कफ का प्रकोप न हो और खाँसी, श्वास (दमा), नजला, जुकाम आदि व्याधियाँ न हों।
ताजा दही, छाछ, नींबू आदि का सेवन कर सकते हैं।
भूख को मारना या समय पर भोजन न करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
शीतकाल में जठराग्नि के प्रबल होने पर उसके बल के अनुसार पौष्टिक और भारी आहाररूपी ईंधन नहीं मिलने पर यह बढ़ी हुई अग्नि शरीर की धातुओं को जलाने लगती है
जिससे वात कुपित होने लगता है। अतः इस ऋतु में उपवास भी अधिक नहीं करना चाहिए। शरीर को ठंडी हवा के सम्पर्क में अधिक देर तक न आने दें। प्रतिदिन प्रातःकाल दौड़ लगाना, शुद्ध वायु सेवन हेतु भ्रमण, शरीर की तेलमालिश, व्यायाम, कसरत व योगासन करने चाहिए।
जिनकी तासीर ठंडी हो, वे इस ऋतु में गुनगुने गर्म जल से स्नान करें।
अधिक गर्म जल का प्रयोग न करें। हाथ-पैर धोने में भी यदि गुनगुने पानी किया जाय तो हितकर होगा। शरीर की चंपी करवाना एवं यदि कुश्ती अथवा अन्य कसरतें आती हों तो उन्हें करना हितावह है। तेलमालिश के बाद शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना हितकारी है।
शिशिर ऋतु
शरीर को थोड़ा गर्म रखने से दूर रहती हैं मौसमी बीमारी
कमरे एवं शरीर को थोड़ा गर्म रखें। सूती, मोटे तथा ऊनी वस्त्र इस मौसम में लाभकारी होते हैं।
प्रातःकाल सूर्य की किरणों का सेवन करें। पैर ठंडे न हों, इस हेतु जुराबें अथवा जूतें पहनें।
बिस्तर, कुर्सी अथवा बैठने के स्थान पर कम्बल, चटाई, प्लास्टिक अथवा टाट की बोरी बिछाकर ही बैठें।
सूती कपड़े पर न बैठें। इन दिनों स्कूटर जैसे दुपहिया खुले वाहनों द्वारा लम्बा सफर न करते हुए बस, रेल, कार जैसे वाहनों से ही सफर करने का प्रयास करें।
देशी व आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन लाभदायक
दशमूलारिष्ट, लोहासव, अश्वगंधारिष्ट, च्यवनप्राश अथवा अश्वगंधावलेह अथवा अश्वगंधाचूर्ण जैसे
देशी व आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करने से वर्ष भर के लिए पर्याप्त शक्ति का संचय किया जा सकता है। हेमंत ऋतु में बड़ी हरड़ के चूर्ण में आधा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर
तथा शिशिर ऋतु में अष्टमांश (आठवां भाग) पीपर मिलाकर 2 से 3 ग्राम मिश्रण प्रातः लेना लाभदायी है। यह उत्तम रसायन है।
सोमवती अमावस्या 14 दिसम्बर को है। रात्रि 09:47 तक है।
सोमवती अमावस्या के पर्व में स्नान-दान का बड़ा महत्त्व है।
इस दिन मौन रहकर स्नान करने से हजार गौदान का फल होता है।
सोमवती अमावस्या पर भगवान विष्णु की प्रदक्षिणा करने का महत्व
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इस दिन पीपल और भगवान विष्णु का पूजन तथा उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है।
108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के वृक्ष को कच्चा सूत लपेटते हुए की जाती है।
प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक रखे जाते हैं।
बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मणों या ब्राह्मणियों में वितरित कर दिये जाते हैं।
ऐसा करने से संतान चिरंजीवी होती है।
तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है
सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार अगर तुलसी की परिक्रमा करते हो, ॐकार का थोड़ा जप करते हो,
सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हो;
तुलसी को 108 बार प्रदक्षिणा करने से घर से दरिद्रता भाग जाएगी |
नकारात्मक ऊर्जा मिटाने के लिए नमक डालकर पोछा लगायें
घर में हर अमावस्या अथवा हर १५ दिन में पानी में खड़ा नमक (१ लीटर पानी में ५० ग्राम खड़ा नमक) डालकर पोछा लगायें । इससे नेगेटिव एनेर्जी चली जाएगी । अथवा खड़ा नमक के स्थान पर गौझरण अर्क भी डाल सकते हैं ।
समृद्धि बढ़ाने के लिए कर्जा हो गया है तो अमावस्या के दूसरे दिन से पूनम तक रोज रात को चन्द्रमा को अर्घ्य दे, समृद्धि बढेगी । दीक्षा मे जो मन्त्र मिला है उसका खूब श्रध्दा से जप करना शुरू करें,जो भी समस्या है हल हो जायेगी । अमावस्या के दिन जो वृक्ष, लता आदि को काटता है अथवा उनका एक पत्ता भी तोड़ता है, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है
हिन्दू पंचांगदिनांक 13 दिसम्बर 2020
panchang
दिन – रविवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – कार्तिक) पक्ष – कृष्ण तिथि – चतुर्दशी रात्रि 12:44 तक तत्पश्चात अमावस्या नक्षत्र – अनुराधा 14 दिसम्बर रात्रि 01:40 तक तत्पश्चात ज्येष्ठा योग – सुकर्मा सुबह 08:18 तक तत्पश्चात धृति राहुकाल – शाम 04:37 से शाम 05:59 तक सूर्योदय – 07:08 सूर्यास्त – 17:57 दिशाशूल – पश्चिम दिशा में व्रत पर्व विवरण – मासिक शिवरात्रि विशेष – चतुर्दशी और अमावस्या, रविवार के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
त्रिस्पृशा एकादशी व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है ।इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं । हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है। यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है । इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए । जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया ।
ग्यारह दिसम्बर 2020 शुक्रवार को त्रिस्पृशा-उत्पत्ति एकादशी है ।
एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है । इस एकादशी को रात में जागरण करनेवाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है । ‘पद्म पुराण’ में आता है कि देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से कहा : ‘‘सर्वेश्वर ! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिये, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं ।” महादेवजी : ‘‘विद्वान् ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है, इसीलिए इसे ‘वैष्णवी तिथि कहते हैं । भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में पूछने पर बताया था : ‘‘जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा’ समझना चाहिए । यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करोड तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है ।
एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं
पितर परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं ।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है ।धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है । कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है । परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है ।पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ ।भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है । एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है । एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे
एकादशी को दिया जला के विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें
विष्णु सहस्त्रनाम नहीं हो तो १० माला गुरुमंत्र का जप कर लें। अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके एकादशी के दिन ये सावधानी रहे महीने में १५-१५ दिन में एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है… तो एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है…ऐसा डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा
हिन्दू पंचांग दिनांक 10 दिसम्बर 2020
panchang
दिन – गुरुवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – कार्तिक) पक्ष – कृष्ण तिथि – दशमी दोपहर 12:51 तक तत्पश्चात एकादशी नक्षत्र – हस्त सुबह 10:51 तक तत्पश्चात चित्रा योग – सौभाग्य रात्रि 07:26 तक तत्पश्चात शोभन राहुकाल – दोपहर 01:53 से शाम 03:15 तक सूर्योदय – 07:06 सूर्यास्त – 17:56 दिशाशूल – दक्षिण दिशा में व्रत पर्व विवरण – उत्पत्ति एकादशी (स्मार्त) विशेष – विस्तृत के लिए देखें : https://powergallery.in/
भैरव अष्टमी का पर्व सोमवार 07 दिसम्बर को है। यह दिन भगवान के सभी रूपों के समर्पित होता है।
इन्हें शिव का ही एक रूप माना जाता है,इनकी पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व माना जाता है।
कई रूपों में पूजा जाता है।
मुख्य 8 रूप माने जाते हैं। उन रूपों की पूजा करने से भगवान अपने सभी भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।
भगवान भैरव के 8 रूप जानें कौन-सी मनोकामना के लिए करें किसकी पूजा
कपाल रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है ।
इस रुप में भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं।
भैरव के इन रुप की पूजा अर्चना करने से कानूनी कारवाइयां बंद हो जाती है । अटके हुए कार्य पूरे होते हैं ।
क्रोध रुप की पूूूूजा अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है
गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं ।
भगवान के इस रुप का वाहन गरुण हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते हैै ।असितांग स्वरुप असितांग रुप में गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है
और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं ।
तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है ।
भगवान भैरव के इस रुप की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है । चंद भैरव भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है ।
एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए है।
इसकी पूजा करने से शत्रुओं पर विजय मिलता हैं
और हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता आती है ।
गुरू रुप की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति
हाथ में कपाल, कुल्हाडी, और तलवार पकड़े हुए है ।
यह भगवान का नग्न रुप है और उनकी सवारी बैल है।
इस रुप के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है।इस रुप की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है । संहार भैरव संहार नग्न रुप में है, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है।
इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है ।
इस रुप में आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है।
इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते है । उन्मत भैरव उन्मत शांत स्वभाव का प्रतीक है।
इनकी पूजा-अर्चना करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती है ।
इस रुप का स्वरूप भी शांत और सुखद है।
इस रुप के शरीर का रंग हल्का पीला हैं और उनका वाहन घोड़ा हैं। भीषण भैरव इस रुप में की पूजा-अर्चना करने से बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है।
उनके एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए है । इनका वाहन शेर है ।
हिन्दू पंचांग दिनांक 06 दिसम्बर 2020
panchang
दिन – रविवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – कार्तिक) पक्ष – कृष्ण तिथि – षष्ठी रात्रि 07:44 तक तत्पश्चात सप्तमी नक्षत्र – अश्लेशा दोपहर 02:46 तक तत्पश्चात मघा योग – इन्द्र सुबह 08:14 तक तत्पश्चात वैधृति राहुकाल – शाम 04:35 से शाम 05:57 तक सूर्योदय – 07:03 सूर्यास्त – 17:55 दिशाशूल – पश्चिम दिशा में व्रत पर्व विवरण – 💥 विशेष – षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
शिव पुराण में आता हैं कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (पूनम के बाद की ) के दिन
सुबह में गणपतिजी का पूजन करें और चतुर्थी की
रातको चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और ये मंत्र बोलें : ॐ गं गणपते नमः । ॐ सोमाय नमः ।
चतुर्थी तिथि विशेष :विघ्नों और मुसीबते दूर करने के लिए
चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेशजी हैं। हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी कहते हैं।
अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥ “ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्ष तक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।
कपूर की टिकिया से दूर होंगे बीच के तनाव
रात को सोते समय पत्नी अपने पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति अपनी पत्नी के तकिये में कपूर की 2 टिकियां रख दें।
प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर कही उचित स्थान पर फेंक दें
तथा कपूर को निकाल कर शयन कक्ष में जला दें।
यदि ऐसा नहीं करना चाहते हैं तो प्रतिदिन शयनकक्ष में कर्पूर जलाएं और कर्पूर की 2 टिकियां शयनकक्ष के किसी कोने में रख दें।
जब वह टिकियां गलकर समाप्त हो जाए तो दूसरी रख दें।
मार्गशीर्ष मास में शिव ज्योतिर्मय स्तम्भ रूप से प्रकट हुए
शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव जब ज्योतिर्मय स्तम्भरूप से प्रकट हुए थे उस समय मार्गशीर्ष मास में आद्रा नक्षत्र था। जो मनुष्य मार्गशीर्ष मास में आद्रा नक्षत्र (02 दिसम्बर, बुधवार को सुबह 10:39 से 03 दिसम्बर, गुरुवार को दोपहर 12:22 तक) होने पर पार्वती सहित भगवान शिव के दर्शन करता है यत्पुनः स्तंभरूपेण स्वाविरासमहं पुरा ॥ १,९.१५ स कालो मार्गशीर्षे तु स्यादार्द्रा ऋक्षमर्भकौ ॥ १,९.१५ आर्द्रायां मार्गशीर्षे तु यः पश्येन्मामुमासखम् ॥ १,९.१६ मद्बेरमपि वा लिंगं स गुहादपि मे प्रियः ॥ १,९.१६ अलं दर्शनमात्रेण फलं तस्मिन्दिने शुभे ॥ १,९.१७ अभ्यर्चनं चेदधिकं फलं वाचामगोचरम् ॥ १,९.१७ अथवा उनकी मूर्ती या लिङ्ग की झांकी करता है वह भगवान शिव के लिए कार्तिकेय से भी अधिक प्रिय है। अगर पूजन भी कर लिया जाए तो इतना अधिक फल मिलता है की उसका वाणी द्वारा वर्णन नहीं हो सकता।
छह मंत्र का रामबााण उपाए
हमारे जीवन में बहुत समस्याएँ आती रहती हैं, मिटती नहीं हैं ।,
कभी कोई कष्ट, कभी कोई समस्या | ऐसे लोग शिवपुराण में बताया हुआ एक प्रयोग कर सकते हैं कि, कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पुर्णिमा के बाद की चतुर्थी ) आती है |
उस दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे घर में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं वो नष्ट हों | छः मंत्र इस प्रकार हैं 1ॐ सुमुखाय नम: : सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहे । 2ॐ दुर्मुखाय नम: : मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो… भैरव देख दुष्ट घबराये । 3ॐ मोदाय नम: : मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले । उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें । 4 ॐ प्रमोदाय नम: : प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं । भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी होता है, आलसी । आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है । और जो प्रमादी न हो, लक्ष्मी स्थायी होती है । 5 ॐ अविघ्नाय नम: 6 ॐ विघ्नकरत्र्येय नम:
हिन्दू पंचांग दिनांक 02 दिसम्बर 2020
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दिन – बुधवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – कार्तिक) पक्ष – कृष्ण तिथि – द्वितीया शाम 06:22 तक तत्पश्चात तृतीया नक्षत्र – मॄगशिरा सुबह 10:38 तक तत्पश्चात आर्द्रा योग – साध्य सुबह 11:15 तक तत्पश्चात शुभ राहुकाल – दोपहर 12:28 से दोपहर 01:50 तक सूर्योदय – 07:01 सूर्यास्त – 17:54 (सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मे हर जिले वार अंतर सम्भव है) दिशाशूल – पूर्व दिशा में व्रत पर्व विवरण – विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन या कटेहरी) खाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) विस्तृत के लिए देखें : https://powergallery.in/
आँवला एक ऐसा श्रेष्ठ फल है जो वात, पित्त व कफ तीनों दोषों का शमन करता है।
मधुर, अम्ल, कड़वा, तीखा व कसैला इन पाँच रसों की शरीर में पूर्ति करता हैं |
आँवले के सेवन से आयु, स्मृति, कांति एवं बल बढ़ता है |
ह्रदय एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलती है |
आँखों के तेज में वृद्धि, बालों की जड़ें मजबूत होकर बाल काले होना आदि अनेकों लाभ होते हैं | शास्त्रों में आँवले का सेवन पुण्यदायी माना गया हैं |
अत: अस्वस्थ एवं निरोगी सभी को आँवले का किसी-न-किसी रूप में सेवन करना ही चाहिए |
आँवले के मीठे लच्छे और व्यंजन बनाएं सर्दियों को गर्म
आँवले केमीठे लच्छेसामग्री : ५०० ग्राम आँवला, ५ ग्राम काला नमक, चुटकीभर सादा नमक, चुटकीभर हींग, ५०० ग्राम मिश्री, आधा चम्मच नींबू का रस, १५० ग्राम तेल |
विधि : आँवलों को धोकर कद्दूकश कर लें | गुलाबी होने तक इनको तेल में सेंके।
फिर कागज पर निकालकर रखें ताकि कागज सारा तेल सोख लें|इनमे काला नमक व नींबू का रस मिलाकर अलग रख दें |
बस, हो गए आँवले के मीठे लच्छे तैयार ! इन्हें काँच के बर्तन में भरकर रख लें |सर्दियों के लिए बल व पुष्टि का खजाना
उडद की दाल और शहद का कमाल
रात को भिगोयी हुई १ चम्मच उड़द की दाल सुबह महीन पीसकर उसमें २ चम्मच शुद्ध शहद मिला के चाटें |
१ – १.३० घंटे बाद मिश्रीयुक्त दूध पियें |
पूरी सर्दी यह प्रयोग करने से शरीर बलिष्ठ और सुडौल बनता है तथा वीर्य की वृद्धि होती है | दूध के साथ शतावरी का २ – ३ ग्राम चूर्ण लेने से दुबले-पतले व्यक्ति, विशेषत: महिलाएँ कुछ ही दिनों में पुष्ट जो जाती हैं |
यह चूर्ण स्नायु संस्थान को भी शक्ति देता हैं | रात को भिगोयी हुई ५ – ७ खजूर सुबह खाकर दूध पीना या सिंघाड़े का देशी घी में बना हलवा खाना शरीर के लिए पुष्टिकारक है |
रात को भुनी सौंफ खाने का कमाल
रोज रात को सोते समय भुनी हुई सौंफ खाकर पानी पीने से दिमाग तथा आँखों की कमजोरी में लाभ होता है | |१०० ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को २० ग्राम घी में मिलाकर मिट्टी के पात्र में रख दें |
सुबह ३ ग्राम चूर्ण दूध के साथ नियमित लेने से कुछ ही दिनों में बल-वीर्य की वृद्धि होकर शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है |
आँवला चूर्ण से वीर्य तथा कांति में वृद्धि
विधि आँवला चूर्ण, घी तथा शहद समान मात्रा में मिलाकर रख लें | रोज सुबह एक चम्मच खाने से शरीर का बल, नेत्रज्योति, वीर्य तथा कांति में वृद्धि होती है | हड्डियाँ मजबूत बनती हैं
शक्तिवर्धक खीर : ३ चम्मच गेहूँ का दलिया व २ चम्मच खसखस रात को पानी में भिगो दें | प्रात: इसमें दूध और मिश्री डालकर पकायें | आवश्यकता अनुसार मात्रा घटा-बढ़ा सकते हैं | यह खीर शक्तिवर्धक है |
गेंंहू और बला के चूर्ण का हलवा हड्डी जोड देता है
हड्डी जोडनेवाला हलवा : गेहूँ के आटे में गुड व ५ ग्राम बला चूर्ण डाल के बनाया गया हलवा (शीरा) खाने से टूटी हुई हड्डी शीघ्र जुड़ जाति है | दर्द में भी आराम होता है | सर्दियों में हरी अथवा सूखी मेथी का सेवन करने से शरीर के ८० प्रकार के वायु-रोगों में लाभ होता है ।सब प्रकार के उदर-रोगों में मठ्ठे और देशी गाय के मूत्र का सेवन अति लाभदायक है | (गोमूत्र न मिल पाये तो गोझरण अर्क का उपयोग कर सकते हैं |
हिन्दू पंचांगदिनांक 01 दिसम्बर 2020
panchang
दिन – मंगलवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – मार्गशीर्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार – कार्तिक) पक्ष – कृष्ण तिथि – प्रतिपदा शाम 04:51 तक तत्पश्चात द्वितीया नक्षत्र – रोहिणी सुबह 08:31 तक तत्पश्चात मॄगशिरा योग – सिद्ध सुबह 11:09 तक तत्पश्चात साध्य राहुकाल – शाम 03:12 से शाम 04:34 तक सूर्योदय – 07:00 सूर्यास्त – 17:54 (प्रत्येक जिले के लिए समय मे कुछ अंतर संभव है) दिशाशूल – पूर्व दिशा में व्रत पर्व विवरण – विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*
मार्गशीर्षहिन्दू धर्म का नौवाँ महिना है। इसे अग्रहायण नाम भी दिया गया है।
अग्रहायण शब्द ‘आग्रहायणी’ नक्षत्र से संबंधित है जो मृगशीर्ष या मृगशिरा का ही दूसरा नाम है ।
अग्रहायण का तद्भव रूप ‘अगहन’ है ।
इस वर्ष एक दिसम्बर 2020 मंगलवार (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) से मास आरम्भ हो रहा है।
वैदिक काल से मार्गशीर्ष माह का विशेष महत्व रहा है। प्राचीन समय में इस मास से ही नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता था।
अगहन माह में सनातन संस्कृति के दो प्रमुख विवाह संपन्न हुए थे।
शिव विवाह तथा राम विवाह।
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को राम विवाह तो सर्वविदित है ही साथ ही शिवपुराण, रुद्रसंहिता,
पार्वतीखण्ड के अनुसार सप्तर्षियों के समझाने से हिमवान ने शिव के साथ
अपनी पुत्री का विवाह मार्गशीर्ष माह में निश्चित किया था ।
“मार्गशीर्षोऽधिकस्तस्मात्सर्वदा च मम प्रियः ।।
उषस्युत्थाय यो मर्त्यः स्नानं विधिवदाचरेत् ।।
तुष्टोऽहं तस्य यच्छामि स्वात्मानमपि पुत्रक ।।”
श्रीभगवान कहते हैं की मार्गशीर्ष मास मुझे सदैव प्रिय है।
जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर मार्गशीर्ष में विधिपूर्वक स्नान करता है,
उस पर संतुष्ट होकर मैं अपने आपको भी उसे समर्पित कर देता हूँ। मार्गशीर्ष में सप्तमी, अष्टमी मासशून्य तिथियाँ हैं।
एक ही समय भोजन करना चाहिए
मासशून्य तिथियों में मंगलकार्य करने से वंश तथा धन का नाश होता है। महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार
“मार्गशीर्षं तु वै मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्।
भोजयेच्च द्विजाञ्शक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्बिषैः।।
सर्वकल्याणसम्पूर्णः सर्वौषधिसमन्वितः।
कृषिभागी बहुधनो बहुधान्यश्च जायते।।”
जो मार्गशीर्ष मास को एक समय भोजन करके बिताता है और अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्माण को भोजन कराता है, वह रोग और पापों से मुक्त हो जाता है ।
shri vishnu
वह सब प्रकार के कल्याणमय साधनों से सम्पन्न तथा सब तरह की औषधियों (अन्न-फल आदि) से भरा-पूरा होता है।
मार्गशीर्ष मास में उपवास करने से मनुष्य दूसरे जन्म में रोग रहित और बलवान होता है।
उसके पास खेती-बारी की सुविधा रहती है तथा वह बहुत धन-धान्य से सम्पन्न होता है ।
स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार
चांदी के दान से होती है वीर्य की वृद्धि !
“मार्गशीर्षं समग्रं तु एकभक्तेन यः क्षिपेत् ।। भोजयेद्यो द्विजान्भक्त्या स मुच्येद्व्याधिकिल्विषैः।।” जो प्रतिदिन एक बार भोजन करके समूचे मार्गशीर्ष को व्यतीत करता है और भक्तिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराता है, वह रोगों और पातकों से मुक्त हो जाता है। शिवपुराण के अनुसार इस मास में चाँदी का दान करने से वीर्य की वृद्धि होती है।
शिवपुराण विश्वेश्वर संहिता के अनुसार मार्गशीर्ष में अन्नदान का सर्वाधिक महत्व है
अर्थात मार्गशीर्ष मास में केवल अन्नका दान करने वाले मनुष्यों को ही सम्पूर्ण अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो जाती है |
अन्न का दान करने से नष्ट होते हैं पाप
मार्गशीर्षमास में अन्न का दान करने वाले मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं | मार्गशीर्ष माह में मथुरापुरी निवास करने का बहुत महत्व है।
स्कन्दपुराण में स्वयं श्रीभगवान, ब्रह्मा से कहते हैं – “पूर्णे वर्षसहस्रे तु तीर्थराजे तु यत्फलम् । तत्फलं लभते पुत्र सहोमासे मधोः पुरे ।।”
अर्थात तीर्थराज प्रयाग में एक हजार वर्ष तक निवास करने से जो फल प्राप्त होता है,
मथुरा में निवास करने का विशेष महत्व
वह मथुरापुरी में केवल अगहन (मार्गशीर्ष में निवास करने से मिल जाता है। मार्गशीर्ष मास में विश्वदेवताओं का पूजन किया जाता है कि जो गुजर गये
उनकी आत्मा की शांति हेतु ताकि उनको शांति मिले |
जीवनकाल में तो बिचारे शांति न लें पाये और चीजों में उनकी शांति दिखती रही पर मिली नहीं | तो मार्गशीर्ष मास में विश्व देवताओं के पूजन करते है भटकते जीवों के सद्गति हेतु |
हिन्दू पंचांग दिनांक 30 नवम्बर 2020
panchang
दिन – सोमवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – कार्तिक पक्ष – शुक्ल तिथि – पूर्णिमा दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात प्रतिपदा नक्षत्र – रोहिणी पूर्ण रात्रि तक योग -शिव सुबह 10:47 तक तत्पश्चात सिद् राहुकाल – सुबह 08:21 से सुबह 09:43 तक सूर्योदय – 07:00 सूर्यास्त – 17:54 (हर जिले के लिए सूर्योदय और सूर्यास्त के समय मे अंतर संभव है) दिशाशूल – पूर्व दिशा में
गुरु नानकजी
व्रत पर्व विवरण – कार्तिक पूर्णिमा, देव दिवाली, कार्तिक स्नान समाप्त, तुलसी विवाह समाप्त, गुरु नानकजी जयंती विशेष – पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
एक दिसम्बर 2020 मंगलवार से मार्गशीर्ष का आरम्भ हो रहा है।
मार्गशीर्ष मास में इन तीन के पाठ की बहुत ज्यादा महिमा है ।
1विष्णुसहस्त्र नाम 2भगवत गीता और 3 गजेन्द्रमोक्ष की खूब महिमा है। इस मास में ‘श्रीमद भागवत’ ग्रन्थ को देखने की भी महिमा है ।
स्कन्द पुराण में लिखा है कि घर में अगर भागवत हो तो एक बार दिन में उसको प्रणाम करना चाहिए।
मार्गशीर्ष मास में अपने गुरु को,इष्ट को ” ॐ दामोदराय नमः ” कहते हुए प्रणाम करने की बड़ी भारी महिमा है |
शंख में तीर्थ का पानी भरो और घर में जो पूजा का स्थान है उसमें भगवान , गुरु उनके ऊपर से शंख घुमाकर
भगवान का नाम बोलते हुए वो जल घर की दीवारों पर छिडको उससे घर में शुद्धि बढ़ती है।शांति बढ़ती है ।क्लेश झगड़े दूर होते है।
मार्गशीर्ष मास को हिन्दू पंचांग के अनुसार अगहन मास भी कहा जाता है।
विशेष ~ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी कार्तिक मास)
मार्गशीर्ष मास मेंआर्थिक कष्ट निवृति योग
एक दिसम्बर 2020 मंगलवार को मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा है । अगर कोई आदमी गरीबी से बहुत पीड़ित हो ,पैसों की तंगी से बहुत पीड़ित हो और कर्जे का ब्याज भरते-भरते परेशान हो गया हो
बहुत तकलीफ सहन करनी पड़ती हो तो मार्गशीर्ष कृष्ण प्रतिपदा को रात के समय गुरुदेव का पूजन कर दिया ।
मानसिक या दिया जलाकर । फिर भगवान विष्णु का स्मरन करके
shri vishnu
“मंगलम भग्वान विष्णु, मंगलम गरुध ध्वज | मंगलम पुण्डरीकाक्ष, मंगलाय तनो हरि ।” भगवान का स्मरण करते हुए निम्न 6 मंत्र बोले ॐ वैश्वानराय नम:,ॐ अग्नयै नम:ॐ हविर्भुजै नम:,ॐ द्रविणोदाय नम: ॐ संवर्ताय नम:,ॐ ज्वलनाय नम:
हिन्दू पंचांगदिनांक 29 नवम्बर 2020
panchang
दिन – रविवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – कार्तिक पक्ष – शुक्ल तिथि – चतुर्दशी दोपहर 12:47 तक तत्पश्चात पूर्णिमा नक्षत्र – कृत्तिका 30 नवम्बर प्रातः 06:04 तक तत्पश्चात रोहिणी योग – परिघ सुबह 10:10 तक तत्पश्चात शिव राहुकाल – शाम 04:34 से शाम 05:56 तक सूर्योदय – 06:59 सूर्यास्त – 17:54 दिशाशूल – पश्चिम दिशा में व्रत पर्व विवरण – वैकुंठ चतुर्दशी, व्रत पूर्णिमा, त्रिपुरारी पूर्णिमा, भीष्मपंचक समाप्त विशेष – चतुर्दशी, रविवार और पूर्णिमा के दिन ब्रह्मचर्य पालन करे तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
एकादशी माह में दो बार आती है।अलग अलग महत्व है। व्रत से हर इच्छा पूरी हो सकती है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता रहता है, वह जीवन में कभी भी संकटों से नहीं घिरता और उसके जीवन में धन और समृद्धि बनी रहती है।
व्रत के करने के 26 फायदे हैं
व्यक्ति निरोगी रहता है, राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है,
पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सर्वकार्य सिद्ध होते हैं,
सौभाग्य प्राप्त होता है, मोक्ष मिलता है, विवाह बाधा समाप्त होती है,
धन और समृद्धि आती है, शांति मिलती है, मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है,
हर प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं, खुशियां मिलती हैं, सिद्धि प्राप्त होती है,
उपद्रव शांत होते हैं, दरिद्रता दूर होती है, खोया हुआ सबकुछ फिर से प्राप्त हो जाता है,
पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है, भाग्य जाग्रत होता है, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है,
पुत्र प्राप्ति होती है, शत्रुओं का नाश होता है, सभी रोगों का नाश होता है,
कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है, वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है और हर कार्य में सफलता मिलती है।
पापमोचिनी के व्रत से पाप का नाश
चैत्र माह में कामदा और पापमोचिनी एकादशी आती है। कामदा से राक्षस आदि की योनि से छुटकारा मिलता है और यह सर्वकार्य सिद्धि करती है तो पापमोचिनी एकादशी व्रत से पाप का नाश होता है और संकटों से मुक्ति मिलती है।
वैशाख में वरुथिनी और मोहिनी एकादशी आती है। वरुथिनी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है तो मोहिनी एकादशी विवाह, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है, साथ ही मोह-माया के बंधनों से मुक्त करती है।
निर्जला व्रत से हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि
ज्येष्ठ माह में अपरा और निर्जला एकादशी आती है। अपरा का व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना है। इसके करने से हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि होती है।
एकादशी का व्रत
आषाढ़ माह में योगिनी और देवशयनी एकादशी आती है। योगिनी के व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है।
कामिका एकादशी का व्रत कुयोनि को प्राप्त नहीं होने देता
श्रावण माह में कामिका और पुत्रदा एकादशी आती है। कामिका का व्रत सभी पापों से मुक्त कर जीव को कुयोनि को प्राप्त नहीं होने देता है। पुत्रदा का व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है।
भाद्रपद में अजा और परिवर्तिनी एकादशी आती है। अजा से पुत्र पर कोई संकट नहीं आता, दरिद्रता दूर हो जाती है, खोया हुआ सबकुछ पुन: प्राप्त हो जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है।
आश्विन माह में इंदिरा एवं पापांकुशा एकादशी आती है। पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली इंदिरा एकादशी के व्रत से स्वर्ग की प्राप्ति होती है जबकि पापांकुशा एकादशी सभी पापों से मुक्त कर अपार धन, समृद्धि और सुख देती है।
रमा से सभी सुख,प्रबोधिनी से भाग्य जाग्रत होता है
कार्तिक में रमा और प्रबोधिनी एकादशी आती है। रमा का व्रत करने से सभी सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवउठनी या प्रबोधिनीका व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है। इस दिन तुलसी पूजा होती है।
मार्गशीर्ष में उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी आती है। उत्पन्ना का व्रत करने से हजार वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इससे देवता और पितर तृप्त होते हैं। मोक्षदा का व्रत मोक्ष देने वाला होता है।
सफला एवं पुत्रदा सफलता और पुत्र की प्राप्ति के लिए
पौष में सफला एवं पुत्रदा एकादशी आती है। सफला, सफल करने वाली होती है। सफला व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा का व्रत करना चाहिए।
माघ में षटतिला और जया आती है। षटतिला एकादशी व्रत रखने से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। जया एकादशी व्रत रखने से ब्रह्महत्यादि पापों से छुट व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है तथा भूत-पिशाच आदि योनियों में नहीं जाता है।
विजया और आमलकी एकादशी
फाल्गुन में विजया और आमलकी एकादशी आती है। विजया से भयंकर परेशानी से व्यक्ति छुटकारा पाता है और इससे शत्रुओं का नाश होता है। आमलकी में आंवले का महत्व है। इसे करने से व्यक्ति सभी तरह के रोगों से मुक्त हो जाता है, साथ ही वह हर कार्य में सफल होता है।
अधिकमास माह में पद्मिनी (कमला) एवं परमा आती है। पद्मिनी एकादशी का व्रत सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला है। परमा धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है।
कार्तिक मास के अंतिम 3 दिन दिलाएं महा पुण्य पुंज
विष्णु सहस्त्रनाम
कार्तिक मास में सभी दिन अगर कोई स्नान ना कर पाए तो त्रयोदशी, चौदस और पूनम
ये तीन दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान कर लेने से पूरे कार्तिक मास के स्नान के पुण्यो की प्राप्ति होती है l
इन तीन दिन विष्णु सहस्रनाम पाठ और गीता का पाठ भी अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यदायी है l
पद्मपुराण के अनुसार देव प्रबोधिनी का व्रत करने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
पुण्य की वृद्धि होती है।
साथ ही मोक्ष की प्राप्ति का भी योग बनता है।
मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यह व्रत करता है
उससे एक हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है
व्यतिपात योग – 26 नवम्बर 2020 गुरुवार को सुबह 07:37 से 27 नवम्बर, शुक्रवार को सुबह 08:30 तक व्यतीपात योग है।
हिन्दू पंचांगदिनांक 26 नवम्बर 2020
panchang
दिन – गुरुवार विक्रम संवत – 2077 शक संवत – 1942 अयन – दक्षिणायन ऋतु – हेमंत मास – कार्तिक पक्ष – शुक्ल तिथि – द्वादशी पूर्ण रात्रि तक नक्षत्र – रेवती रात्रि 09:21 तक तत्पश्चात अश्विनी योग – सिद्धि सुबह 07:36 तक तत्पश्चात व्यतिपात राहुकाल – दोपहर 01:48 से शाम 03:11 तक सूर्योदय – 06:57 सूर्यास्त – 17:54 दिशाशूल – दक्षिण दिशा में व्रत पर्व विवरण – देवउठी-प्रबोधिनी एकादशी (भागवत), तुलसी विवाह प्रारंभ, चतुर्मास समाप्त, द्वादशी वृद्धि तिथि जो दोनों पक्षों की एकादशियों को आँवले के रस का प्रयोग कर स्नान करते हैं,
उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। माह में दो एकादशियां होती हैं अर्थात आपको माह में बस दो बार
और वर्ष के 365 दिनों में मात्र 24 बार ही नियमपूर्वक व्रत रखना है।
हालांकि प्रत्येक तीसरे वर्ष अधिकमास होने से दो और एकादशियां जुड़कर ये कुल 26 होती हैं।